रचनाकार: अनिरुद्ध सिन्हा
घर की नाज़ुक बातों से समझाते हैं
आँखों के पत्थर भी नम हो जाते हैं
शासन के वैसे हम एक बिजूका हैं
बच्चे जिस पर पत्थर तेज़ चलाते हैं
नोच वही देते हैं सारी तस्वीरें
अपने भीतर सोच नहीं जो पाते हैं
रात भटकती, सुबह सरकती साँसों पर
दुविधाओं के जंगल भी उग आते हैं
परजीवी आकाश पकड़ती दुनिया के
खूनी पंजे वाले हाथ बढ़ाते हैं!
घर की नाज़ुक बातों से समझाते हैं
आँखों के पत्थर भी नम हो जाते हैं
शासन के वैसे हम एक बिजूका हैं
बच्चे जिस पर पत्थर तेज़ चलाते हैं
नोच वही देते हैं सारी तस्वीरें
अपने भीतर सोच नहीं जो पाते हैं
रात भटकती, सुबह सरकती साँसों पर
दुविधाओं के जंगल भी उग आते हैं
परजीवी आकाश पकड़ती दुनिया के
खूनी पंजे वाले हाथ बढ़ाते हैं!
No comments:
Post a Comment