By अनिरुद्ध सिन्हा
अपने भीतर झाँक लें अपनी कमी को देख लें
इस लतीफ़ों के शहर में ज़िन्दगी को देख लें ।
तालियों के शोर में उनकी सहज मुस्कान में
दर्द का काँटा चुभाकर रहबरी को देख लें ।
प्यार से छूकर गया जो गूँथकर चिंगारियाँ
वक़्त के पहलू में वैसे अजनबी को देख लें ।
रंग आवाज़ों के बदलेंगे उछालो रोटियाँ
एक मुद्दत से खड़ी इस मफ़लिसी को देख लें ।
कब तलक गर्दन हमारी न्याय-मंचों तक रहे
सिलपटों में इस व्यथा की वर्तनी को देख लें ।
अपने भीतर झाँक लें अपनी कमी को देख लें
इस लतीफ़ों के शहर में ज़िन्दगी को देख लें ।
तालियों के शोर में उनकी सहज मुस्कान में
दर्द का काँटा चुभाकर रहबरी को देख लें ।
प्यार से छूकर गया जो गूँथकर चिंगारियाँ
वक़्त के पहलू में वैसे अजनबी को देख लें ।
रंग आवाज़ों के बदलेंगे उछालो रोटियाँ
एक मुद्दत से खड़ी इस मफ़लिसी को देख लें ।
कब तलक गर्दन हमारी न्याय-मंचों तक रहे
सिलपटों में इस व्यथा की वर्तनी को देख लें ।
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