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2/19/2015

वीर तुम बढ़े चलो (Veer Tum Badhe Chalo)

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए
मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

                                          ~द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी (Dwarika Prasad Maheshwari)

एक तिनका (Ek Tinka)

मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,

एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।

मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे,
ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी।

जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।

                               अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ (Ayodhya Singh Upadhyay 'Hariaudh')

1/08/2015

पहचान बचाकर रखना

एक उम्मीद लगाकर रखना.
दिल में कंदील जलाकर रखना.

कुछ अकीदत तो बचाकर रखना.
फूल थाली में सजाकर रखना.

जिंदगी साथ दे भी सकती है
आखरी सांस बचाकर रखना.

पास कोई न फटकने पाए
धूल रस्ते में उड़ाकर रखना.

लफ्ज़ थोड़े, बयान सदियों का
जैसे इक बूंद में सागर रखना.

ये इबादत नहीं गुलामी है
शीष हर वक़्त झुकाकर रखना.


भीड़ से फर्क कुछ नहीं पड़ता
अपनी पहचान बचाकर रखना

----देवेंद्र गौतम

9/26/2013

जो बीत गई सो बात गई (Jo Beet Gayi So Baat Gayi)

                                                                       — हरिवंशराय बच्चन

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया।

अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले।

पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है?

जो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया।

मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है?

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया।

मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं?
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है.

जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं।

फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं।

जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है।

जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है?

जो बीत गई सो बात गई....

अपने को इस तरह से तैयार कीजिए

नफ़रत की आन्धियों से, मिटता है आदमी
जो हो सके तो आदमी से, प्यार कीजिए।

कहते हैं सभी लोग कि , वो गुनहगार है
अपने गुनाह को भी, स्वीकार कीजिए।

मीठी ही बातें बोलकर, ठगते हैं लोग सब
आँखों में झांक कर ही, ऐतबार कीजिए।

सच को न आईने की जरुरत कभी पड़ी
खुद को न आईने में, गुनहगार कीजिए।

रोटी को जोड़ते हैं, किश्मत से लोग क्यों ?
रोटी सभी को मिल सके , अधिकार दीजिए।

धर्मो-करम के नाम पर, कटते हैं आदमी
इस रोग से न खुद को, बीमार किजिए।

कितना भी खुशनशीव हो, रोता है आदमी
जो कर सकें तो उनका, उपचार कीजिए।

सूरज व चाँद की किरण देती है रोशनी
मन के चिराग से न, अंधकार कीजिए।

खिलते हैं सभी फूल ही, झरने के वास्ते
हँसते हुए जाने का इंतजार कीजिए।

लोगों की हकीकत को न ज्यादा कुरेदिए
निभ जाए साथ इसतरह, व्यवहार कीजिए।

है आदमी मरा हुआ, लाशें हैं चल रही
लाशों की भीड़ से न तकरार कीजिए।

अभिमान के नशे में ही, हारा है आदमी
झुककर सभी के सामने, संसार जीतिए।

दुनिया है आपके लिए, हैं आपके ही सब
अपने को इस तरह से तैयार कीजिए

9/23/2013

कोशिश करने वालों की (Koshish karne walon ki kabhi haar nahi hoti)

                                                       --हरिवंशराय बच्चन


लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

9/20/2013

नर हो न निराश करो मन को (Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko)


नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।
संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।
- मैथिलीशरण गुप्त (Maithili Sharan Gupt)