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9/26/2013

अपने को इस तरह से तैयार कीजिए

नफ़रत की आन्धियों से, मिटता है आदमी
जो हो सके तो आदमी से, प्यार कीजिए।

कहते हैं सभी लोग कि , वो गुनहगार है
अपने गुनाह को भी, स्वीकार कीजिए।

मीठी ही बातें बोलकर, ठगते हैं लोग सब
आँखों में झांक कर ही, ऐतबार कीजिए।

सच को न आईने की जरुरत कभी पड़ी
खुद को न आईने में, गुनहगार कीजिए।

रोटी को जोड़ते हैं, किश्मत से लोग क्यों ?
रोटी सभी को मिल सके , अधिकार दीजिए।

धर्मो-करम के नाम पर, कटते हैं आदमी
इस रोग से न खुद को, बीमार किजिए।

कितना भी खुशनशीव हो, रोता है आदमी
जो कर सकें तो उनका, उपचार कीजिए।

सूरज व चाँद की किरण देती है रोशनी
मन के चिराग से न, अंधकार कीजिए।

खिलते हैं सभी फूल ही, झरने के वास्ते
हँसते हुए जाने का इंतजार कीजिए।

लोगों की हकीकत को न ज्यादा कुरेदिए
निभ जाए साथ इसतरह, व्यवहार कीजिए।

है आदमी मरा हुआ, लाशें हैं चल रही
लाशों की भीड़ से न तकरार कीजिए।

अभिमान के नशे में ही, हारा है आदमी
झुककर सभी के सामने, संसार जीतिए।

दुनिया है आपके लिए, हैं आपके ही सब
अपने को इस तरह से तैयार कीजिए

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